खेती बारी
शुक्रवार, 11 नवंबर 2011
नवगछिया समाचार: गंगा पार के किसान, धान से बनेंगे धनवान
सोमवार, 7 नवंबर 2011
कोसी पार दियारा के खेतों में उपजेगा पोखराज
क्या कहते हैं किसान
कोसी पार के मिल्की टोला के किसान वकील मंडल, रामानन्द मंडल, विनोद मंडल तथा भगवानपुर के किसान संजय मंडल, सुधीर मिस्त्री, अंचल कुमार सिंहा, जागो मंडल, श्याम मिस्त्री धोबिनियां बासा के किसान मनोरंजन भगत, पवन यादव, भविक्षण यादव, कहते है कि यह पोखराज आलू नहीं हमारे लिए पोखराज रत्न की खेती साबित होगी। क्योंकि यह हमारी एक अतिरिक्त आमदनी होगी। जबकि समय पर हम अगली खेती भी कर सकेंगे। इस बीच खेत खाली रह जाता था। हमारी अगली फसल इस प्रभेद के कारण आसानी से लग पाएगी।
कहां प्रारंभ हुई खेती
नवगछिया अनुमंडल के कोसी पार स्थित ढोलबज्जा पंचायत के मिल्की में आलू की विशेष खेती इस वर्ष बिहार सरकार के कृषि सलाहकार राम नरेश प्रसाद एवं एसएमएस रितेश कुमार द्वारा प्रारंभ कराई गई है। जो काफी लाभप्रद मानी जा रही है।
क्या कहते है किसान सलाहकार
नवगछिया के इस क्षेत्र के किसान सलाहकार राम नरेश प्रसाद कहते है कि हम अपने क्षेत्र के किसानों को प्रोत्साहित कर पोखराज किस्म के आलू की विशेष तौर से खेती करवा रहे है।जिससे किसानों को अतिरिक्त फायदा होगा |
शनिवार, 5 नवंबर 2011
गंगा पार के किसान, धान से बनेंगे धनवान
प्रायोगिक तौर पर धान की खेती कर रहे किसान मो इरफ़ान, चंद्रशेखर सिंह इत्यादि बताते है कि इस खेती की लागत की वसूली तो इसके लरवा यानि पुआल से ही हो जाती है। जो पशुचारा के रुप में बिक जाती है। फायदे में बचता है पूरा धान। जो लगभग 30 क्विंटल प्रति एकड़ की दर पर पैदा होता है। जिसकी कीमत लगभग 25 हजार होती है।यानी इस खेती में आम के आम, गुठली के दाम मिलते हैं |
मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010
खेती पर लटक रही खतरे की तलवार
भागलपुर । खेती पर खतरे की तलवार लटक रही है। खरीफ की खेती में किसानों को जोरदार झटका लगा है, उनकी पूंजी भी डूबने की कगार पर है। दरअसल, मौसम के भरोसे खरीफ में धान की खेती करने वाले किसानों को इस बार मानसून ने जोर का झटका दिया है। मानसूनी बारिश ने पिछले 40 साल का रिकार्ड तोड़ दिया है। 2010 में जनवरी से लेकर अक्टूबर तक में अब तक महज 731 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई है, जबकि अच्छी खेती के लिए कम से कम 1100 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए थी। पिछले साल इस महीने तक 1050 मिलीमीटर बारिश हुई थी। मौसम विभाग सबौर के प्रभारी मौसमी वेदशाला प्रभारी प्रो. वीरेन्द्र कुमार ने सोमवार को बिहार कृषि विश्वविद्यालय में वैज्ञानिकों की हुई मासिक बैठक में मौसम विभाग का जो प्रतिवेदन प्रस्तुत किया उससे वैज्ञानिकों की नींद उड़ गई। उन्होंने बताया कि अगर मानसून की बारिश का यही हाल रहा तो खेती करना घाटे का सौदा साबित होगा। उन्होंने बताया कि इस सीजन में किसानों को सबसे अधिक उम्मीद हथिया नक्षत्र से थी लेकिन इस नक्षत्र में भी महज 10 मिलीमीटर बारिश हुई। इस कारण खेतों में लगी धान की फसल में बाली नहीं निकली। कम बारिश होने से खेतों में काफी नमी है। इससे रबी फसल में खासकर गेहूं आदि की खेती भी बुरी तरह प्रभावित होगी। मौसम वैज्ञानिकों ने बारिश के पानी के संचयन तंत्र को विकसित कर सिंचाई प्रबंधन को मजबूत करने की जरूरत जताई है। मौसम विभाग ने नवंबर व दिसंबर में नहीं के बराबर बारिश होने की संभावना व्यक्त की है।
बागवानी की ओर बढ़ा किसानों का रूझान
भागलपुर । जिले के नौ प्रखंडों में धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। लेकिन पिछले दो सालों से मानसून की मार के कारण सुखाड़ की समस्या झेल रहे किसानों का रूझान अब बागवानी की ओर बढ़ा है। पीरपैंती, कहलगांव, शाहकुंड, जगदीशपुर जैसे धान बाहुल्य इलाकों में इस बार बड़े पैमाने पर आम के पौधे लगाए गए हैं। डोहराडीह के किसान उमाकांत सिंह ने बताया कि धान की खेती में काफी सिंचाई की जरूरत पड़ती है। सिंचाई की ठोस व्यवस्था नहीं होने से इस बार काफी खेत खाली रह गए। ऐसे में बागवानी की ओर किसानों का आकर्षण बढ़ा है। जिला उद्यान पदाधिकारी धु्रव कुमार झा ने बताया कि बागवानी किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हो रहा है।
शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010
धान की बाली खाली-खाली
भागलपुर । कतरनी की सुगंध को लेकर चर्चित भागलपुर के किसानों की बैचेनी बढ़ गई है। चुनावी दंगल में अपनी उपेक्षा से आहत किसान नेताओं को कोस रहे हैं। प्रकृति की मार से इस बार किसानों की कोठी खाली ही रह जाएगी। बैजानी के 60 वर्षीय किसान मोहन मंडल नेताओं का नाम सुनते ही भड़क जाते हैं। कर्ज पर खेती करने वाले मोहन को मलाल है कि अगर सियासत के सुरमा किसानों के हितैषी होते तो उन्हें ये दिन देखने नहीं पड़ते। मोहन कहते हैं कि नेताओं को किसानों की आह से कोई वास्ता नहीं रह गया है। सुखाड़ के कारण विलंब से धान की रोपणी हुई। नतीजतन बाली में धान के दाने नहीं आए। यह व्यथा केवल मोहन की नहीं वरन उन सभी किसानों की है जिनकी नींद धान की फसल देख उड़ गई है। किसानों का कहना है कि अगर पंजाब, हरियाणा की तरह उनके यहां भी हर खेत तक सिंचाई की सुविधा होती तो शायद उन्हें ये दिन देखने नहीं पड़ते। पूंजी भी डूबने के कगार पर है। धान की फसल को किसान जानवरों को खिला रहें हैं। 50 वर्षीय किसान गणेश मंडल ने खरीफ के मौसम में दस हजार रूपए खर्च कर तीन बीघा धान रोपा है। लेकिन इस बार बारिश की कमी ने किसानों को कहीं का नहीं छोड़ा है।
किसानों का कहना है कि सिंचाई सुविधा के अभाव में वे लोग डैम से नाला बनाकर पानी को खेतों तक लाते थे लेकिन इस बार गहरे खेतों में पानी किसी तरह पहुंचा। लेकिन ऊंचे खेतों में पानी नहीं पहुंचने से धान की खेती प्रकृति की भेंट चढ़ गई।
रविवार, 26 सितंबर 2010
मॉनसेंटो शुरू करेगी मोबाइल आधारित सेवा
शुक्रवार, 24 सितंबर 2010
नए रूप में दिखेगी दियारा की खेती
क्या है दियारा विकास परियोजना
दियारा का अधिकांश हिस्सा बाढ़ में डूब जाता है। जब जमीन पानी से बाहर आती है तो बिना अधिक मेहनत के किसानों को इससे अच्छी उपज प्राप्त हो जाती है। अगस्त से लेकर जनवरी तक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों का चयन किया जाएगा और उन्हें सब्जी, दलहन की खेती, मछली पालन के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा। किसानों को जिलास्तर के अलावा राज्यस्तर पर भी प्रशिक्षित किया जाएगा। लौकी, खीरा, परवल, तरबूज, खरबूज, करैला, झींगा, नेनुआ, सहजन, बोरा, शकरकन्द, तीसी, मिश्रीकंद, मसूर, गर्मा मूंग, मटर की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
जिला कृषि पदाधिकारी दिनेश प्रसाद सिंह ने बताया कि दियारा विकास योजना के तहत किसानों के बीच बीज वितरण, पौधा वितरण, कृषकों को राज्य के अंदर व बाहर भ्रमण एवं प्रशिक्षण का आयोजन कर उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि किया जाना है। इसके अतिरिक्त बॉयो जैविक, एवं बॉयो रसायान का वितरण, मिनी किट वितरण आदि कार्यक्रमों के साथ- साथ जैविक सत्यापन, बेबीकॉर्न का बाजार व्यवस्था के साथ उत्पादन प्रमुख है। साथ ही किसानों को सिंचाई व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए उनके लिए बांस बोरिंग की व्यवस्था की जाएगी। दियारा विकास परियोजना के तहत चयनित किसानों को बेबीकॉर्न की खेती की जानकारी दी जाएगी। बेबीकॉर्न यानी शिशु मक्का के बीज व जैविक उपादान उपलब्ध कराया जाएगा। किसानों द्वारा उपजाए गए बेबीकॉर्न की खरीद की व्यवस्था सरकार द्वारा फल-सब्जी विकास निगम के माध्यम से की जाएगी। बेबीकॉर्न हर मौसम में उपजाया जा सकता है। एक एकड़ में मात्र 2400 रुपए का खर्च आता है। इसकी जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जाएगा। बेबीकॉर्न का उपयोग लजीज व्यंजन बनाने, सलाद के रूप में काफी लोकप्रिय है।